Saturday, October 16, 2010

AAJ KI NAARI

आज की नारी 

जिंदगी को जनम देती है नारी 
उसके अमूल्य योगदान से ही ये दुनिया चलती है सारी
घर बाहर दोनों काम बखूबी संभाल लेती है 
परिवार के दुःख-सुख को प्यार से सवांर देती है
घर की धुरी बन जाती है नारी
जिसके चारों और है परिवार की जिम्मेदारी
आज की नारी ने अपनी शक्ति को पहचाना है
इसलिये ये पुरुषों द्वारा बनाया समाज घबराया है
उसने पुरुष के कमाने के अहम् को नीचे गिराया है
अपनी मेहनत और बुद्धि से अपना मनोबल बढाया है
पुरुषों के कंधे से कन्धा मिला कर चल रही है
हर छेत्रमें उनसे आगे बढ़ रही है
आज की नारी ने अपना आत्मसम्मान जगाया है
इसलिये पुरुषों के अत्याचार के खिलाफ नारा लगाया है
दोहरी जिम्मेदारियां उठा रही है वोह
ग्रहस्थी के साथ-साथ पैसे भी कमा रहीं है वोह
पुरुष जब उसे आगे बढ़ने से नहीं रोक पाया है
तब उसे अपनी ताकत का भय दिखाया है
पुरुष की ताकत के आगे कमजोर है वो
इसलिये उसके अत्त्याचार सहने को मजबूर है वो
भले ही आज सरकार ने कितने कानून बनाए
पर समाज के डर से कहाँ तक अमल हो पाए
चाहे दुनिया २१वी सदी में जा रही है
 
पर नारी का शोषंड आज भी जारी है
आपस में एकता बनाकर अपना
मान समाज में बढाना है
आपस में सहयोग और प्रेम बढाकर
हर नारी को शोषंड से बचाना है
क्योंकि हम नारी नहीं है अब 'अबला'
हम तो बन चुकी हैं 'सबला'


 


Tuesday, October 5, 2010

zindagi

लम्हा-लम्हा ज़िन्दगी निकलती जाती है 
हर पल हर लम्हा खट्टी-मीठी यादें दे जाती  है 
ज़िन्दगी से रूबरू हो कर रहो 
हर पल हर लम्हे को जी भर कर जियो 
जीवन मैं कुछ ऐसे काम करो 
दुनिया याद रखे जब तुम ना रहो
सुख मे दुःख और दुःख में सुख को ना भूलो 
ज़िन्दगी की इस धूपछांव के साथ अठखेलियाँ खेलो 
कल की चिंता में आज को ना भूलो 
अपनी तमन्नाओ इच्छाओं को पूर्ण कर लो 
आज है तभी तो कल आएगा 
ज़िन्दगी के नए नए रंग दिखायेगा 
यह ज़िन्दगी है बहुत खूबसूरत 
पर कभी-कभी इसमें आ जाती है बदसूरती की झलक 
बदसूरती को एक बुरे सपने की तरह भूल जाइए 
खूबसूरत पल के हर लम्हे को दिल से लगाइए 
जब तक ज़िन्दगी है,यह सब तो चलता रहेगा 
परन्तु यह पल यह छण फिर दुबारा नहीं मिलेगा 
जितना मिला है उतना ख़ुशी-ख़ुशी अपने 
कर्म की नीयति मान कर अपनाइए
भगवान् की देन है यह ज़िन्दगी
वरदान समझकर जिए जाइए  


Sunday, October 3, 2010

sajan

मेरे जीवन की बहार हो तुम 
 मेरी बिंदिया,कुमकुम,गहना 
सारा श्रृंगार हो तुम 
मेरे तन-मन के हर एहसास
के कद्रदान हो तुम 
मेरे सपनों, भावनाओं ,अरमानों 
से ना अनजान हो तुम 
मेरे साजन, मेरे प्रियतम ही नहीं 
मेरे तो भगवान् हो तुम  





Saturday, October 2, 2010

SAPNO KI DUNIYA

आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें 
जहाँ दूर तक खुली फिजां हो 
हरी भरी वादियाँ हो 
नदियाँ और झरने हों 
चहचहाते पंछी और फूल हों 
दूर तक फैली हरियाली हो
आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें
जहाँ किसी के चीखने की आवाज ना हो
किसी भूखें बच्चे का रोना ना हो 
किसी औरत की बेबसी ना हो 
किसी पर अत्याचार ना हो 
कहीं भ्रष्टाचार ना हो

आओ हम कहीं ऐसी जगह चलें 
जहाँ हर तरफ शांति सुकून हो 
आपस मैं अपनापन हो 
पुलकित प्रफुलित  चेहरे हों
और जहाँ हो सिर्फ 
प्यार-प्यार-प्यार